Friday, August 2, 2019

The Story About Garhwal Painting History प्रसिद्ध चित्रकार मौला राम Molaram

The Story About Garhwal Painting History  प्रसिद्ध चित्रकार  मौला राम Molaram  



 नाम- मौला राम तोमर. 
 जन्म- 1743,  (श्रीनगर गढ़वाल).
 पिता- मंगतराम.  
 माता- रमा देवी.
 पेशा-  चित्रकार  साहित्यकार इतिहासकार राजनीतिज्ञ.
 पारिवारिक पेशा- स्वर्णकार.
 मृत्यु- 1833  (श्रीनगर गढ़वाल).




        उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में चित्रकला की एक अनूठी शैली है, जो कई सदियों से चली आ रही है। विख्यात चित्रकारों में एक नाम #मौला राम का है। माई 1658 में दारा शिकोह के पुत्र सुलेमान शिकोह, औरंगजेब के डर से भाग कर गढ़वाल नरेश की शरण में आ गए। तब वह अपने साथ 2 चित्रकारों को भी लाए कुंवर श्यामदास और उनके पुत्र हरदास के पुत्र हीरालाल हुए और हीरालाल के पुत्र मंगतराम हुए मंगत राम के पुत्र मौला राम हुए मौला राम के पुरखों ने गढ़वाल चित्रकला को संरक्षण और संवर्धन दिया।
        मौला राम दिल्ली के प्रसिद्ध चित्रकार श्याम दास की पांचवी पीढ़ी में जन्मे थे। इनका जन्म श्रीनगर गढ़वाल में हुआ। इनके पिता मंगतराम और माता रमा देवी पैसे से स्वर्णकार थे, इन्होंने अपने पिता से स्वर्ण कला के साथ-साथ चित्र कला भी सीखी। मौलाराम की कलाकृतियां आज भी हमारे गौरवशाली इतिहास की समृद्धि को  पुष्ट कर रही हैं। इनके चित्रों में हिमालय की छटा गढ़वाली पशु-पक्षियों और वृक्षों की शोभा तथा नदियों की पवित्रता का चित्रण है। अमेरिका के प्रसिद्ध बोस्टन संग्रहालय में मौला राम के उत्कृष्ट कला चित्र आज भी शोभा बढ़ा रहे हैं। इससे पूर्व 1947 में इनकी चित्रकला को विश्व चित्रकला प्रदर्शनी में लंदन में दिखाया जा चुका है। मौला राम को वर्तमान समय में प्रकाश में लाने का मुख्य श्रेय बैरिस्टर मुकुंदी लाल को जाता है। मुकुंदी लाल ने सन 1968 में इनके जीवन के ऊपर एक पुस्तक गढ़वाल पेंटिंग्स लिखी, जिसे 1969 में भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित किया गया।

मालाराम जी की पेंटिंग
        चित्रकार के साथ-साथ मौला राम अपने कालखंड के श्रेष्ठ साहित्यकार, इतिहासकार, कुशल राजनीतिज्ञ भी रहे हैं। मौला राम संतों, नाथों और सिद्धों से बहुत प्रभावित थे। उनका एक काव्य मन्मथ पंथ यही सिद्ध करता है। मौला राम के 7 हस्तलिखित काव्य भी प्राप्त हुए हैं। गढ़ राजवंश इनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। उत्तराखंड के मूर्धन्य इतिहासकार डॉ शिव प्रकाश डबराल 'चारण' की खोज के अनुसार मौला राम के अब तक 35 हिंदी काव्य खोजे जा चुके हैं। 
ऐतिहासिक कथाओं पर आधारित काव्य 12 है।
पौराणिक आख्यानों पर आधारित काव्य 6
संतों पर लिखे काव्य 10।
राष्ट्रीय उद्यान संबंधी काव्य 3
नीति एवं श्रृंगार काव्य 4 हैं

माैलाराम जी द्वारा बनाए हुए कुछ चित्र

 





      मौला राम ने गढ़वाल के 4 राजाओं के शासनकाल में कार्य किया, महाराजा प्रदीप साह (1717-1722)  ललित साह (1722-1780), जयकृत शाह (1780-1785),  प्रद्युमन शाह ( 1785-1804) राजाओं ने इन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन और संरक्षण दिया। मौला राम अपने 93 वर्षीय जीवन काल के अंतिम समय में गोरखा दरबार (1804-1015) की कृपा पर भी आश्रित रहे और सन 1815-1833 तक अंग्रेजी राज को भी देखा।
         मौला राम के बनाए गए चित्रों को  मौला राम आर्ट गैलरी, श्रीनगर गढ़वाल, ब्रिटेन के संग्रहालय, बोस्टन संग्रहालय अमेरिका, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के संग्रहालय, भारत कला भवन, बनारस, अहमदाबाद, के संग्रहालय और लखनऊ, दिल्ली, कोलकाता तथा इलाहाबाद की आर्ट गैलरी में देखे जा सकते हैं।

         मौला राम की कला और साहित्य को प्रचार-प्रसार और संवर्धन की नितांत आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ी अपनी समृद्ध कला से प्रेरणा लेकर भारतीय संस्कृति को सम्पुष्ट कर सके। भारतीय संस्कृति उस समय की चित्रकला पद्धति और प्रगति सामान्य साहित्य सरलता तथा सौंदर्य को परिलक्षित करती है तत्कालीन चित्रकला में अतीत की गंभीरता और शनै-शनै आगे बढ़ती 18 वीं सदी की प्रचुर रमणीयता पाई जाती है। सांसारिक और असांसारिक विषयों को रंगों में बांधा गया है।

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